सुनील छेत्री की सफलता की कहानी एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी है जो हर किसी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की प्रेरणा देती है। सुनील छेत्री जिन्हें भारतीय फुटबॉल का ‘कप्तान’ और ‘गोल मशीन’ कहा जाता है, ने अपनी मेहनत और लगन से न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। आइए, उनकी सफलता की कहानी को कदम दर कदम समझते हैं।

शुरुआती जीवन और फुटबॉल से जुड़ाव
सुनिल छेत्री का जन्म 3 अगस्त 1984 को सिकंदराबाद, तेलंगाना में हुआ था। उनके पिता खगोत्रा छेत्री भारतीय सेना में थे और उनकी माँ सुशीला छेत्री भी नेपाल की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की खिलाड़ी थीं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ही फुटबॉल से जुड़ी थी, और इसलिए उन्हें भी बचपन से ही उन्हें फुटबॉल से प्यार था, और वह हर मौके पर फुटबॉल खेलते थे।
छेत्री ने अपने स्कूल के दिनों में ही फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था। वह अपने दोस्तों के साथ हर दिन अभ्यास करते थे और फुटबॉल को अपना जीवन मानते थे। उनकी लगन को देखते हुए उनके माता-पिता ने उन्हें पूरा सहयोग दिया।
संघर्ष और करियर की शुरुआत
सुनिल छेत्री ने अपने फुटबॉल करियर की शुरुआत दिल्ली के एक छोटे क्लब बागान से की थी। सुनिल छेत्री का फुटबॉल करियर आसान नहीं था। उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। फिर उन्होंने जेसीटी क्लब जॉइन किया, जहाँ उन्होंने शानदार खेल दिखाया और 48 मैचों में 21 गोल किए।उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) में प्रशिक्षण के लिए चुना गया। यहां उन्होंने अपने खेल को और निखारा और अपनी क्षमताओं को पहचाना। उनके इस प्रदर्शन के कारण उन्हें भारतीय राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका मिला।
भारतीय टीम में प्रवेश और सफलता
सुनिल छेत्री ने 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम के लिए अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। उन्होंने अपने पहले ही मैच में गोल कर दिया और अपनी प्रतिभा को साबित किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार अपनी टीम के लिए शानदार प्रदर्शन किया।
2007 में, उन्होंने नेहरू कप में भारत के लिए शानदार खेल दिखाया और टीम को जीत दिलाई। इसके बाद 2008 में एएफसी चैलेंज कप में उनके बेहतरीन खेल की वजह से भारत ने टूर्नामेंट जीता और 27 साल बाद एशियन कप के लिए क्वालीफाई किया।
सुनिल छेत्री को 2011 में भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम का कप्तान बनाया गया। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने कई महत्वपूर्ण जीत हासिल की। उन्होंने न सिर्फ अपने खेल से बल्कि अपने नेतृत्व क्षमता से भी टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी कप्तानी में भारत ने 2019 में इंटरकॉन्टिनेंटल कप जीता, जो एक बड़ी उपलब्धि थी।

विदेशी क्लबों में खेलना
सुनील छेत्री ने न सिर्फ राष्ट्रीय टीम बल्कि क्लब फुटबॉल में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने भारत के अलग-अलग क्लबों जैसे मोहन बागान, डेम्पो, और बंगालुरू एफसी के लिए खेलकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने विदेशी क्लबों जैसे कंसास सिटी विजर्ड्स (अमेरिका) और स्पोर्टिंग लिस्बन बी (पुर्तगाल) के लिए भी खेलकर भारतीय फुटबॉल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। लेकिन वहाँ भी ज्यादा खेलने का अवसर नहीं मिला। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी और भारत लौटकर फिर से अपने खेल पर ध्यान केंद्रित किया।
रिकॉर्ड्स, पुरस्कार और सम्मान
सुनिल छेत्रीने अपने करियर में कई रिकॉर्ड बनाए हैं: –
वह भारतीय फुटबॉल टीम के सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी हैं।
वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ियों की सूची में टॉप 5 में शामिल हैं।
उन्होंने लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो के साथ कई बार गोल स्कोरिंग लिस्ट में जगह बनाई।
सुनिल छेत्री को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें अर्जुन पुरस्कार, पद्म श्री, और AIFF प्लेयर ऑफ द ईयर जैसे सम्मानों से नवाजा गया है। ये पुरस्कार न सिर्फ उनकी प्रतिभा बल्कि उनकी मेहनत और समर्पण को भी दर्शाते हैं।
प्रेरणादायक व्यक्तित्व
सुनिल छेत्री सिर्फ एक बेहतरीन खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि एक शानदार इंसान भी हैं। वह युवाओं को प्रेरित करते हैं और भारतीय फुटबॉल को ऊँचाई पर ले जाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। 2018 में, जब भारतीय टीम के मैचों में दर्शक कम आ रहे थे, तब उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया और लोगों से भारतीय फुटबॉल को समर्थन देने की अपील की। उनकी इस अपील का इतना असर हुआ कि स्टेडियम फुल हो गए और भारतीय फुटबॉल को नया जीवन मिला।
सुनिल छेत्री की कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत और संघर्ष से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उन्होंने अपने पूरे करियर में कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
आज वह भारतीय फुटबॉल के सबसे बड़े सितारे हैं और उनकी सफलता हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है। उनकी कहानी हमें यह विश्वास दिलाती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता हैं।
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